Laavanya - IV :: Kuchipudi Dancer ~Haleem Khan




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Laavanya ~IV



K U C H I P U D I   D A N C E R   ‘H A L E E M   K H A N’ 
( From the Desk of Swapnil Saundarya e zine )

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K U C H I P U D I   D A N C E R    ‘HALEEM  KHAN’







लावण्या ~ ( Laavanya : IV ) 

ज़िद ,जुनून ,प्रतिभा व संघर्ष की अनुपम मिसाल  - हलीम खान






नृत्य का इतिहास अति प्राचीन है. मोहनजोदड़ो और हड़्प्पा की खुदाई में प्राप्त नृत्य करती मूर्तियाँ इसकी प्राचीनता सिद्ध करती हैं. वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों में नृत्य का उल्लेख मिलता है . कौटिल्य ने तो नृत्यकार को इतना महत्व दिया है कि उसने एक स्थान पर लिखा है कि नृत्य के साधकों को राज्याश्रय मिलना चाहिये . राज्य की ओर से उनकी सब प्रकार की व्यवस्था करा देनी चाहिये जिससे कि वे नृत्य साधना ठीक प्रकार से कर सकें.

कुचिपुड़ी नृत्य (Kuchipudi Dance ), आठ भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में से एक है. यह आंध्र प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है .यह संपूर्ण दक्षिण भारत में भी प्रख्यात है . कुचिपुड़ी , कृष्ण जिला के दिवी तालुका के एक गाँव का नाम है. किवदंतियों के अनुसार ,सिद्धेंद्र योगी नामक एक यतीम को कुचिपुड़ी नृत्य - नाट्य परंपरा का संस्थापक माना जाता है. कुचिपुड़ी नृत्य की प्रस्तुति धार्मिक कृत्य से आरंभ होती है और फिर सभी नृत्यकार नृत्य के जरिये अपने पात्र का परिचय देते हैं .कुचिपुड़ी  नृत्य (Kuchipudi Dance ) के साथ कर्नाट्क संगीत का सामंजस्य दर्शकों को लुभान्वित करता है.









कुचिपुड़ी नृत्य  के क्षेत्र में नर्तक 'हलीम खान' ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan ) का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं . कला व कलाकार रंग, वर्ण, लिंग, जाति, धर्म आदि से ऊपर होता है व इन सभी शब्दों से परे अपनी कला के क्षेत्र में लीन रहता है . कला किसी भी रुप में हो , चाहे संगीत कला, चित्र कला या नृत्य कला , एक कलाकार अपनी कला की साधना कर , उसमें लीन होकर ईश्वर से जुड़ जाता है जिसके परिणामस्वरुप वह मानव दुनिया की संकीर्ण मानसिकता से परे अपना अतुल्नीय मुकाम बनाता है .





उपरोक्त बातों का ज्वलंत उदाहरण हैं कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan ) . आंध्र प्रदेश के ओंगोल में मुस्लिम परिवार में जन्में हलीम का रुझान बचपन से ही कुचिपुड़ी नृत्य  की ओर था. मुस्लिम परिवार व पुरुष होने के कारण उन्हें कुचिपुड़ी नृत्य  की विधिवत शिक्षा ग्रहण करने के उनके फैसले के लिए अपने करीबियों का कड़ा विरोध सहना पड़ा. पर कहते हैं , जहाँ चाह है, वहाँ राह है. अत:  हलीम ने अपनी दैनिक दिनचर्या में विविध क्रियाकलापों को सम्मिलित कर लिया और इन्हीं विविध क्रियाकलापों के संगम के मध्य चुपचाप कुचिपुड़ी नृत्य  की शिक्षा लेनी प्रारंभ की . लोगों की आपत्ति व विरोध के बावजूद हलीम न थके , न हारे बल्कि नृत्य के प्रति ये उनका समर्पण व जिद ही थी जिसके परिणामस्वरुप आज हलीम की प्रतिभा का परचम देश विदेश में लहरा रहा है. कुचिपुड़ी नृतक हलीम खान की ख्याति का सूरज देश - विदेश् में चमकता - दमकता कुचिपुड़ी नृत्य  के क्षेत्र में प्रकाश बिखेर रहा है.

देवी - देवताओं की कहानी - किस्सों से प्रेरित होकर हलीम ने इन्हें कुचिपुड़ी नृत्य  के जरिये जन - जन तक पहुँचाया . कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan ) कहते हैं,  " जीत के लिए खुद के साथ जिद करनी पड़ी. मुस्लिम हूँ ,किंतु देवी - देवताओं की कहानियों को मन से स्वीकारा और इन कहानियों पर सच्चे दिल से विश्वास किया . काफी मशक्कत के बाद नृत्य सीखने के लिए गुरु को मनाया . सब को यह भरोसा दिलाने में मुश्किल आई कि मुस्लिम होकर कुचिपुड़ी नृत्य  सीखा है. यह बड़ी चुनौती थी .परिवार को भी एतराज़ था और उन्हें मनाना और उससे पार पाना भी बड़ी बाधा थी किंतु अब स्थिति बेहतर है."

एम.बी.ए डिग्री होल्डर व कुचिपुड़ी नृत्य  में पारंगत हलीम 800  से भी अधिक नृत्य प्रस्तुतियों द्वारा दर्शकों का दिल जीत चुके हैं. आंध्र प्रदेश्, कर्नाटक, तमिल नाडु, महाराष्ट्र समेत पाकिस्तान व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन कर चुके हलीम स्त्री का रुप धारण कर ( Female Impersonaton ), अपनी अतुल्य प्रतिभा की एक अदभुत मिसाल कायम कर चुके हैं.  हलीम, वे शानदार , मनमोहक व लाजवाब नर्तक हैं जो पुरुष होकर भी स्त्री के रुप में अपने नृत्य में बेमिसाल लालित्य , लावण्य व सौंदर्य का समावेश् करने में सक्षम हैं.

कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan ) के नृत्य में पाद विक्षेप, अभिनय , मुद्राएं, नेत्र संचालन, अंग संचालन आदि का उचित सामंजस्य देखते ही बनता है जो कुचिपुड़ी नृत्य  के क्षेत्र में इनकी विधिवत शिक्षा ,अनुभव, ज्ञान व दक्षता को दर्शाता है . तेलुगु  की आठ फिल्में कर चुके हलीम खान , अपनी सीडी के जरिये लोगों को नृत्य सीखने की प्रेरणा देते हैं.  कुचिपुड़ी नृतक हलीम खान  का सपना है कि कुचिपुड़ी नृत्य  को दुनिया भर में नाम व पहचान दिलाएं.










जिद ऐसी कि पत्थर को पिघला दे , हौसला ऐसा कि सामने आते तूफ़ान को पलटा दे .......... अपनी कला के प्रति संपूर्ण निष्ठा व बेमिसाल समर्पण , नृत्य के प्रति बेपनाह दीवानगी व जुनून, कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan ) की प्रतिभा व संघर्ष ,एक मिसाल है हम सभी के लिए और खासकर उन लोगों के लिए जो हालातों के आगे घुटने टेक देते हैं. हलीम खान को प्रतिभा , शक्ति , साहस, दक्षता व समर्पण का पर्याय कहना किसी भी प्रकार से अतिशयोक्ति न होगा .

कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान  ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan ) के विलक्षण व्यक्तित्व को व उनकी प्रतिभा को बयां करने में शब्द शायद कम पड़ जाएं . पता नहीं स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के विशेष कॉलम के ज़रिये  हलीम खान  को आप सभी पाठकों के कितना निकट ला पाया हूँ . कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान के व्यक्तित्व व कुचिपुड़ी नृ्त्य  के क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में लिखते हुए ऐसा महसूस हुआ कि हलीम जी का नृ्त्य  के प्रति समर्पण अदभुत है . अपने में खो जाना ही तो , कभी किसी का हो जाना है  ...... कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान ( Kuchipudi Dancer Haleem Khan )  ने नृ्त्य कला को अपने व्यक्तित्व में इस प्रकार समा लिया है और उसमें खो के वे नृ्त्य के एक बेहतरीन व प्रतिभावान पर्याय बन गए हैं. स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन टीम की ओर से कुचिपुड़ी नर्तक हलीम खान  जी को ढेर सारी शुभकामनाएं व आभार . 



Website :
www.haleemkhan.com





- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
( संस्थापक - संपादक { Founder-Editor } ) 








Kuchipudi Dancer Haleem Khan  was born and finished most of his education in Ongole, Andhra Pradesh. Bred in a rich mix of fabric of Islamic and Telugu culture, he has been attracted to the Indian Traditional dance, especially to the art of Kuchipudi Dance. He has been practicing this dance since a tender age of nine. He was trained under the revered Guru Sri K.V Subrahamanyam, disciple of the venerated Guru Sri (Dr.) Vempati China Satyam.

An MBA by qualification,  Kuchipudi Dancer Haleem Khan  lives in Hyderabad and had given more than 800 solo and group performances all over India and abroad.







He has given more than 800 solo and group performances all over India. The highlights being those held in Andhra Pradesh, Karnataka, Tamil Nadu and Maharashtra - the representative shows have been at the Ravindra Bharati, the Russian Art Theatre at Chennai, Tirupathi Bramostavallu at Tirupathi, Humpi Festival at Humpi, All India Craft Mela at Shilparaman Crafts Village at Hyderabad, Dasara Festival at Mysore, 10th National Youth Festival held at the Lal Bahadur Stadium Hyderabad, a 12 hour dance show Akhanda Annamayya Nrutyabhinaya Yagnam at Guntur. Further, he  has participated and performed on numerous occasions in Hyderabad - at the People's Plaza on the Necklace Road Hyderabad, at the Asian Youth Festival, American Telugu Association Festival at Shilpakala Vediaka and the Secunderabad Carnival at Harihara Kalabhavan at Secunderabad.

A dedicated student of this splendid art form, being drawn to its rich cultural legacy, Kuchipudi Dancer Haleem Khan 's  performances are characterized by Classical Kuchipudi style and much more. The very mode of display, restrained movements as smooth as the flow of honey, scintillating footwork, sequential furtive glances - and all this with the innocence and agility of a young deer, holds the audience spell bound!

Kuchipudi Dancer Haleem Khan  is one of those very few dancers who can also take to the female dance form with equal grace and ease, specially when dancing as Sri Satya Bhama.


He has worked in several dance schools, in Andhra Pradesh including Hyderabad and taught dance to school students on the invitation of these schools. A highly talented and appreciated dance professional, he has won many accolades and gold medals in numerous classical dance competitions. A keen composer, he has demonstrated this on many occasions by composing both classical and fusion music themes, which have orchestrated his performances.


According to Kuchipudi Dancer Haleem Khan , " All over ancient India, it would seem, dance and music were seen not merely as ways to celebrate but also as offerings of worship and thanksgiving to the Divine. Over the course of time, the dance forms practiced in the different parts of the country were codified and developed distinct identities according to the geographic, socio-economic, and political conditions of each region.


The dance form Kuchipudi developed in what is now known as the state of Andhra Pradesh in southern India. Kuchipudi derives its name from the village Kuchelapuram, where it was nurtured by great scholars and artists who built up the repertoire and refined the dance technique.The technique of Kuchipudi makes use of fast rhythmic footwork and sculpturesque body movements. Stylized mime, using hand gestures and subtle facial expression, is combined with more realistic acting, occasionally including dialogues spoken by the dancers. In this blend of performance techniques, Kuchipudi is unique among the Indian classical dance styles. Kuchipudi today is performed either as a solo or a group presentation, but historically it was performed as a dance drama, with several dancers taking different roles. Another unique feature of Kuchipudi is the Tarangam, in which the performer dances on the edges of a brass plate, executing complicated rhythmic patterns with dexterity, while sometimes also balancing a pot of water on the head."


" Kuchipudi is accompanied by Carnatic music. A typical orchestra for a Kuchipudi recital includes the mridangam, flute and violin. A vocalist sings the lyrics, and the nattuvanar conducts the orchestra and recites the rhythmic patterns."  he added .



WEBSITE ::

www.haleemkhan.com







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