An open letter to Indian Ministry of Women & Child Development from Swapnil Saundarya| 'D' for Dignity
An open letter to Indian Ministry of Women & Child Development from Swapnil Saundarya
| महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के नाम 'स्वप्निल सौंदर्य' का खुला पत्र |
सेवा में,
माननीय स्मृति ज़ुबिन ईरानी जी (Smriti Zubin Irani)
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
दिनांक: 08 मार्च 2021
विषय: सतत विकास लक्ष्य-16 व महिलाओं की न्याय तक पहुँच से सम्बंधित मूलभूत बिंदुओं के क्रियान्वयन के संदर्भ में।
महोदया,
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
सतत विकास लक्ष्यों (वैश्विक लक्ष्यों) को सुदृढ़्ता प्रदान करने के लिये हस्तशिल्प उत्पादों की निर्माता फर्म ‘स्वप्निल सौंदर्य लेबल’ द्वारा दिनांक 27 अप्रैल 2020 को शुरु किये गये 10 वर्षीय डिजिटल अभियान ‘स्वप्निल सौंदर्य डेकेड ऑफ़ एक्शन फॉर एसडीजीज़’ के अंतर्गत ‘डी फॉर डिग्निटी’ कार्यक्रम को 25 नवंबर 2020, 'महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस' के साथ शुरू किया गया जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से सतत् विकास लक्ष्य-16 अर्थात 'शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाज को प्रोत्साहन, सब के लिए न्याय सुलभ कराना और सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और समावेशी संस्थाओं की रचना करना' व् सतत् विकास लक्ष्य-8 अर्थात 'उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि' पर सकारात्मक चर्चा, आर्ट एक्टिविज़्म व् जन-भागीदारी संचार द्वारा कुछ ठोस रणनीतियों का स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार करना है। इस अभियान के दौरान महिलाओं की स्थिति (खासकर कोरोना काल के दौरान) को अधिक मजबूत बनाने हेतु युवाओं के बीच विभिन्न चर्चाओं द्वारा, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिलाओं व् किशोरियों के समक्ष खड़ी चुनौतियों पर विचार किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने उजागर हुए जिसको इस खुले पत्र के माध्यम से आपके साथ साझा कर रहे हैं।
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि नारी इस सृष्टि में मानव सृजन का माध्यम है और बिना महिलाओं के मानव सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दुर्भाग्यवश, महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में उन्हें न्याय नहीं मिल पाता, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में दोषियों को उनके अपराधों की गंभीरता और परिणाम के अनुसार सज़ा नहीं मिलती है। यौन तथा जेंडर विशेष के साथ होने वाली हिंसा विश्व के लिए चुनौती हैं। गैर-जवाबदेह कानूनी और न्यायिक प्रणालियों की संस्थागत हिंसा और महिलाओं को उनके मानव अधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं से वंचित करना भी हिंसा और अन्याय के ही रूप हैं। महिलाओं और खासकर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों सहित कमजोर वर्गों की महिलाओं, जो अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों में और अनौपचारिक, असंगठित क्षेत्र में हैं, की अन्यों के अलावा न्याय तक पहुंच अपर्याप्त है जो कहीं न कहीं उनकी गरिमा के समक्ष प्रश्न चिन्ह लगाती हैं। सभी लोग स्वतंत्र और समान हैं और उन्हें गरिमा और मानव अधिकारों के साथ जीने का अधिकार है। अतः महिलाओं व् बहिष्कृत समुदाय के लोगों के लिए न्याय सुलभ कराने हेतु कुछ मूलभूत बिंदुओं पर विचार करना आवश्यक है:
•महिलाओं के हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करने वाली राष्ट्रीय और वैश्विक संस्थाओं को अधिक पारदर्शी एवं असरदार होना होगा। इनमें स्थानीय प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्थाएं शामिल हैं, जो महिला मानव अधिकारों तथा सुरक्षा की गारंटी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
•ऐसी गैर सरकारी संस्थायें (एनजीओ, सीएसओ) जो मात्र अपनी संस्था में विदेशी फंड्स भरने हेतु पीड़िताओं को अपने “प्रोडक्ट्स” की तरह प्रदर्शित करते हैं, उनकी कहानी को बार-बार कुरेद कर, उन पर अहसानों का भार डाल कर उनकी सिसकियों तक को खामोश कर देती हैं, महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं को हतोत्साहित करने का 'केंद्र' बनी ऐसी संस्थाओं को चिन्हित कर उनको त्वरित प्रभाव से 'ब्लैक लिस्ट' किया जाना चाहिए।
•संगठित अपराधों से निपटने हेतु रणनीति तैयार करनी होगी। सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और पारदर्शी संस्थाओं को विकसित करना होगा।
•भारत में न्यायपालिका पर विचाराधीन मुकदमों का भारी बोझ है| भारत, सरकार के अनेक प्रयासों के बल पर न्यायपालिका को सशक्त करने को प्राथमिकता दे रहा है। इनमें जनशिकायत समाधान प्रणाली का प्रगति प्लेटफॉर्म और गाँवों में ग्राम न्यायालयों सहित न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास जैसे प्रयास शामिल हैं। इसके साथ ही, भारत में न्यायपालिका को सुदृढ़ करने हेतु, महिलाओं को उनके न्यायिक अधिकार प्राप्त हो सकें, इसके लिए हमें कानूनी समावेशन की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करने की आवश्यकता है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन, नीति निर्माता और वित्त पोषण संगठन, अनुसन्धान संस्थान; विश्वविद्यालयों; सांख्यिकीय एजेंसीज़, मानवीय और विकास एजेंसीज़, वकील, कानूनी और/या मानवाधिकार संगठनों के बीच साझेदारी हेतु बेहतर प्रणाली तैयार करनी होगी |
•न्यायपालिका में महिलाओं का भरोसा वापस क़ायम करने के लिए सुधार बहुत ज़रूरी हैं| दुर्भाग्यपूर्ण, भारत में न्यायपालिका को कुतरने वाले, इस पवित्र स्थल पर कार्य कर रहे कुछ भ्रष्ट पदाधिकारी ही हैं जिनमें ज्यादा प्रतिशत भ्रष्ट, मुनाफाखोर, भयादोहन में लिप्त, वकीलों का है जो निज स्वार्थ के चलते अपने पेशे का दुरुपयोग कर रहे हैं और क़ानून व्यवस्था पर कलंक लगाने हेतु निरंतर अग्रसर हैं | क़ानून का मज़ाक बनाने वाले, कानूनी दांव-पेंच में फंसाकर आम जनता खासकर महिलाओं का शोषण करने वाले वकीलों की उपाधियों (डिग्री) को रद्द कर इन्हें बार काउंसिल द्वारा ब्लैक लिस्ट करना बेहद आवश्यक है |
•'अंकल जजों' के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए सख्त कानून बनाने आवश्यक हैं| न्यायपालिका में जजों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया अर्थात कॉलेजियन प्रणाली को बेहतर बनाने हेतु मंथन की जरुरत है ताकि महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में अपराधियों को निष्पक्ष सज़ा मिल सके।
•कानूनी समावेश को प्राप्त करने के लिए व्यापक कानूनी सशक्तिकरण योजनाओं पर भी कार्य करना होगा जिसके लिए विभिन्न समाधान-आधारित कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करनी होगी| इसके अंतर्गत सभी हितधारक शामिल हैं, जो महिलाओं, हाशिए के समूहों व् बहिष्कृत समुदायों की कानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थायी और समावेशी समाधानों को लागू करने के लिए मजबूत कदम उठा सकें . साथ ही, लीगल इंक्लूज़न मैपिंग के लिए एक प्रोग्रेस मॉनीटरिंग फ्रेमवर्क तैयार करना होगा जिसका समय-समय पर मूल्यांकन किया जा सके |
•विद्यालयों-महाविद्यालयों में सभी छात्रों को महिलाओं व् बहिष्कृत समुदाय के क़ानूनी अधिकार व् प्रक्रियाओं से अवगत कराने व विभिन्न जागरुकता कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना आवश्यक है।
•Gender और Sexual पहचान के आधार पर संबोधन की बजाय न्यूट्रल शब्दों के उपयोग को प्रचलित किये जाने की आवश्यकता है जिसके लिए नॉन-बाइनरी शब्दावली तैयार की जानी चाहिए। साथ ही पहले से मौजूद शब्दों और व्याकरण के नियमों को पीछे छोड़ते हुए, एक अधिक समावेशी भाषा विकसित कर इसका अधिक से अधिक प्रचार किया जाना चाहिए।
•महिलाओं व किशोरियों के लिए सुलभ ऑनलाइन रोजगारपरक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करनी होगी ताकि वे आत्मनिर्भर बन एक गरिमापूर्ण, सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।
देश आगे बढ़ रहा है । जरुरत है छोटे-छोटे कदमों व प्रयासों द्वारा वैश्विक स्तर पर महिलाओं को असल मायनों में सशक्त बनाने हेतु सकारात्मक बदलाव का उद्घोष किया जाए.... इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष पर एक साथ, एकजुट व निर्भीकता के साथ 'अनेकता में एकता' को महिला सशक्तिकरण की दिशा में पुन: परिभाषित किया जाए।
साभार
-ऋषभ शुक्ला
लेखक-चित्रकार
-स्वप्निल शुक्ला
डिज़ाइनर-सस्टेनेबिलिटी एक्टिविस्ट
A woman should be two things: Who and what she wants
Happy International Women's Day!
March 8 is marked to celebrate international women's day globally. Every year, on this day, people across the world celebrate the achievements of women and they take inspiration from them. Ideally, the honor of women should be celebrated every day, but International Women's Day makes it a little more special. With the changing times, women have proved that nothing is impossible and they are the change they want to see in the world. From being vocal about the issues to breaking the stereotypes, women have proved that the strong will to achieve things can make even the hardest thing easy for them.
To be noted, this year's theme for International Women's Day is #ChooseToChallenge. The International Women's Day website wrote, "We can all choose to challenge and call out gender bias and inequality. We can all choose to seek out and celebrate women‘s achievements. Collectively, we can all help create an inclusive world. From challenge comes change, so let’s all choose to challenge.”
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Swapnil Saundarya Decade of Action for SDGs
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