Be bold for equality | 05 months campaign to strengthen SDG -05| by Swapnil Saundarya

  
BE BOLD FOR EQUALITY
NO FARQ.....NO FEAR

UNBOXING PEOPLE'S THINKING ABOUT GENDER ISSUES 

BECAUSE 
AWARENESS LEADS TO ACTION 
ACTION LEADS TO CHANGE 

SWAPNIL SAUNDARYA DECADE OF ACTION FOR SDGS
STRENGTHENING SDG -05



'बी बोल्ड फॉर इक्वलिटी : सतत विकास लक्ष्‍य 5 - लैंगिक समानता के लिए 5 माह का अभियान'

जेंडर क्या है, सेक्स और जेंडर में क्या फर्क है, किस तरह समाज द्वारा तय किए जाने वाले जेंडर रोल से लैंगिक भेदभाव जन्म लेता है, कैसे पितृ सत्तात्मक मानसिकता स्त्री के जीने की, शिक्षा की अभिव्यक्ति के अधिकार के साथ ही उसके साथ दोयम दर्जे के व्यवहार का वातावरण निर्मित करती है। इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने की मंशा से व जेंडर संवेदनशीलता सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाते हुए भारत की हस्तनिर्मित व ग्रीन प्रोडक्ट्स की निर्माता फर्म स्वप्निल सौंदर्य लेबल द्वारा'बी बोल्ड फॉर इक्वलिटी: नो फ़र्क़ नो फियर' नामक अभियान की शुरुआत दिनांक 20 जून 2020 से की गई ।

  स्वप्निल सौंदर्य डेकेड ऑफ़ एक्शन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स नामक दस वर्षीय अभियान के अंतर्गत सतत विकास लक्ष्‍य 5 - लैंगिक समानता को सुदृढ़ता प्रदान करते 5 माह तक चलने वाले  इस  उप अभियान के अंतर्गत ऐसे उत्पादों के निर्माण व अभिकल्पों को प्रोत्साहन दिया जाएगा जो इक्वलिटी अर्थात समानता के सन्देश को जन -जन तक पहुँचाने में मददगार साबित हों | इसके साथ ही विभिन्न विचार गोष्ठियों के माध्यम से इस सामाजिक कुधारणा की जड़ों को टटोल कर उन्हें उखाड़ फेंकने की रणनीति पर मंथन करते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस 25 नवंबर को अभियान का  समापन किया जाएगा| 




लेखक-चित्रकार व स्वप्निल सौंदर्य लेबल के सहभागी   ऋषभ शुक्ला (Writer-Visual Artist Rishabh Shukla) ने अभियान पर चर्चा करते हुए बताया कि कुछ समय पूर्व  सोशल मीडिया पर एक वीडियो जिसका शीर्षक था, 'रन लाइक अ गर्ल' अर्थात् एक लड़की की तरह दौड़ो, काफी सराहा गया जिसमें 16-28 साल तक की लड़कियों या फिर इसी उम्र के लड़कों से जब "लड़कियों की तरह" दौड़ने के लिए कहा गया तो लड़के तो छोड़िए लड़कियाँ भी अपने हाथों और पैरों से अजीब  तरह के ऐक्शन करते हुए दौड़ने लगीं। कुल मिलाकर यह बात सामने आई कि उनके अनुसार "लड़कियों की तरह दौड़ने" का मतलब "कुछ अजीब तरीके से" दौड़ना होता है। लेकिन जब एक पाँच साल की बच्ची से पूछा गया कि अगर तुमसे कहा जाए कि लड़कियों की तरह दौड़ कर दिखाओ तो तुम कैसे दौड़ोगी? तो उसका बहुत ही सुन्दर जवाब था, "अपनी पूरी ताकत और जोश के साथ"। मतलब साफ़ है कि एक पांच साल की बच्ची के लिए "दौड़ने" और "लड़कियों जैसे दौड़ने" में कोई अंतर नहीं है लेकिन एक व्यस्क लड़के या लड़की के लिए दोनों में बहुत फर्क है। यहाँ गौर करने वाले दो विषय हैं पहला यह कि बात केवल महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये की ही नहीं है बल्की खुद महिलाओं की स्वयं अपने प्रति उनके खुद के नजरिये की है दूसरा यह कि यह नजरिया एक बच्ची में नहीं दिखता। हमारे लिए यह एक संतोष का विषय न होकर एक गहन चिंतन का विषय होना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों है? और जब हम सोचेंगे तो पाएंगे कि दरअसल एक समाज के रूप में यह हमारी एक मानसिक स्थिति है जिसकी जड़ें काफ़ी गहरी हैं।




भारत के प्रतिष्ठित अधिवक्ता करीम अहमद (कानपुर कोर्ट){Advocate Karim Ahmad, Kanpur Court} ने बताया कि  लैंगिक समानता लाने के लिए कानून की जानकारी तो आवश्यक है, इसके साथ ही कानून की जानकारी दूसरों तक पहुंचाना भी जरूरी है। कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं है, यदि प्रत्येक व्यक्ति को कानून की जानकारी समय पर मिल जाए तो वे उनका लाभ आसानी से उठा सकते हैं। लैंगिक समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान के मूल तत्वों में शामिल है। इसलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में महिला सुरक्षा, सम्मान, विकास व भेदभाव से बचाव के प्रावधान किए गए हैं।  संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,39 व 42 में इसकी चर्चा की गई है। जरुरत है कि महिलाओं व् पुरुषों तक सामान्य रूप से क़ानून की जानकारी सरलीकृत भाषा में उपलब्ध कराई जाए ताकि हमारा समाज शोषित व शोषक, दोनों से ही मुक्त हो सके | 




स्वप्निल सौंदर्य लेबल की मुखिया व् ज्वेलरी- फैशन डिज़ाइनर स्वप्निल शुक्ला (Fashion-Jewellery Designer Swapnil Shukla) ने कहा कि अक्सर दावा किया जाता है कि स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं | लेकिन लैंगिक समानता की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत अभी बहुत पीछे और नीचे है| आजादी के बाद भारत ने नियोजित विकास का रास्ता अपनाया| लैंगिक समानता संविधान के मूल तत्त्वों में है और उसी भावना के अनुसार समय-समय पर शिक्षा, परिवार, समाज और कार्यस्थल में भेदभाव के विरूद्ध कानूनी प्रावधान किये गए| उदाहरण के लिये शिक्षा के अधिकार का लागू किया जाना, लड़कियों और महिलाओं के लिये विशेष स्वास्थ्य योजनाएं, विवाह और उत्तराधिकार के कानून, दहेज और गर्भपात के कानून, कार्यस्थल में उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून और सरकारी शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिनसे स्त्रियों को बेहतर जीवन दशाएं प्राप्त करने का हौसला मिला है| लेकिन भारत में अभी भी उस पितृसत्तात्मक ढांचे को नहीं बदला जा सका है जो स्त्री को दोयम दर्जे का मानता है और पुरुष को उसके दमन और शोषण का अधिकार देता है| इसका सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये है कि स्वयं महिलाएं भी अधिकांश मौकों पर यथास्थिति को चुनौती देने में हिचकती हैं और नतीजतन उसका शिकार बनती हैं| बच्चियों के जन्म, उनके पालन-पोषण, पढ़ाई और नौकरी हर स्तर पर यही मानसिकता हावी है| महिलाओं को पीछे रखने में यही सबसे बड़ी बाधा है| आज भी बच्चों के जन्म के बाद उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी स्त्री की ही अधिक समझी जाती है चाहे वो काम पर जाती हो या घर के दायित्व निभाती हो| लिहाजा महिलाएं कई बार पारिवारिक जिम्मेदारी के दबाव में नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं या फिर कार्यस्थल पर उन्हें इसके लिये मजबूर किया जाता है ये समझ कर कि उनकी कार्यक्षमता कम हो चुकी है|



| Artistic cards by Airlines Customer Service Officer Meghana|

एयरलाइन्स कस्टमर सर्विस अफसर मेघना का कहना है कि ऐसा अनुमान है कि भारत में लैंगिक समानता का आर्थिक लाभ हो सकता है। अगर महिलाओं के साथ भेदभाव न किया जाए तो 2025 तक देश की जीडीपी में 700 बिलियन US$ का इजाफा हो सकता है। अतः हमें  लैंगिक समानता के लाभों के बारे में उद्योग जगत को शिक्षित करने हेतु मंच तैयार करने के साथ ही रोल मॉडल्स को चिन्हित कर उनकी सफलता की कहानियों और नीतियों को साझा करना होगा ताकि अन्य लोग भी उनका अनुसरण कर सकें |


महिला और बाल अधिकार एक्टिविस्ट गीता यादव (Women's & Children's rights Activist Geeta Yadav) ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों में प्रगति सुनिश्चित होने के बावजूद जमीनी स्तर पर लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है। महिलाएं शिक्षा को लेकर जागरूक हो रही हैं। हमें ज्यादा महिला वैज्ञानिकों, पुरुष नर्सों की जरूरत है। हमें इस पर और अधिक मेहनत करने तथा दकियानूसी विचारों को तोड़ने की आवश्यकता है। हम बड़े पैमाने पर प्रतिभा को बर्बाद कर रहे हैं और बड़ा अवसर गंवा रहे हैं।


महिला और बाल अधिकार एक्टिविस्ट अराधना रावत (Women's & Children's rights Activist Aradhana Rawat) ने कहा कि हमें एकजुट होकर तमाम ऐसी योजनाओं का समर्थन करना होगा जो लड़कियों में सुरक्षा एवं यौन उत्पीड़न को लेकर जागरूकता निर्माण करे, आदिवासी महिलाओं की अधिक सामाजिक सहभागिता सुनिश्चित करे, समूचे भारत में महिला अधिकारों के साथ कार्यरत नागरिक समाज संगठनों की क्षमता निर्माण करे। लैंगिक मामलों एवं प्राथमिकताओं के साझा समझ को और बेहतर बनाने के लिए हमें अध्ययन एवं सहभाजन (लर्निंग एवं ट्रेनिंग) नियमावली को प्रोत्साहन देना होगा |  'बी बोल्ड फॉर इक्वलिटी : नो फ़र्क़ नो फियर' नामक अभियान द्वारा हम पूरे दिल से लैंगिक समानता का संकल्प लेते हैं|


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Swapnil Saundarya ezine, founded in 2013 is India's first hindi lifestyle online magazine that curates info on art , lifestyle, culture , literature, social issues etc and inspire its readership to raise their voice against all sorts of violence and discrimination. We focus on art Activism, protest art and participatory communication and social action.




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Swapnil Saundarya Label's articles are true example of  perfectly  handcrafted Product. The Production processes used in their crafts typically have a low carbon footprint and promote the use of locally available materials as well as natural and organic materials where possible which requires low energy and sustained our environment. The Label also provide a source of earning and employment for the otherwise low skilled women, thereby improving their status within the household.






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